Shri Radha Kund Se Prakate Swayam Thakur - Gunjan Goswami
गोस्वामी श्री जगदीश जी महाराज ********* सुकवि और साधक गोस्वामी जगदीश जी श्री बाँके बिहारी जी महाराज के राजभोग सेवाधिकारी गोस्वामी अयोध्यानाथ जी के सुपुत्र और उद्भट विद्वान गोस्वामी नीलकंठ जी के अग्रज थे । आप दोनों भाई प्रत्येक एकादशी को राधाकुण्ड पर स्थित श्री स्वामी हरिदास जी महाराज की बैठक पर दर्शन के लिए जाया करते थे । उसदिन श्रावण शुक्ला एकादशी जिसे पवित्रा- एकादशी कहते हैं, का दिन था । दोनों भाई जैसे ही राधाकुण्ड में स्नान करने के लिए कूदे तो कोई शिला-खण्ड नीलकंठ जी से टकराया । मुँह से हल्की-सी कराह निकल पड़ी । जब वे जल से ऊपर उतराये तो उन्होंने यह बात अपने अग्रज जगदीश जी को बतायी। दोनों भाइयों ने पुनः उसी स्थान पर डुबकी लगाकर छानबीन की तो वहाँ से श्री कृष्ण का एक श्यामवर्णी विग्रह उन्हें प्राप्त हुआ। दोनों भाई इस विग्रह के साथ वृन्दावन लौट आये और अपने घर में श्री गोवर्द्धन नाथ के नाम से प्रतिष्ठित कर इनकी सेवा-पूजा करते रहे । आज भी यह स्वरूप बिहारी पुरा , वृन्दावन में उनके उत्तराधिकारियों द्वारा पूजित है । श्री जगदीश जी संस्कृत के सुकवि और श्री बाँके बिहारी जी महाराज के अनन्य उपासक थे । उनके द्वारा रचित " श्री कुञ्जबिहारी अष्टक " श्री बिहारी जी महाराज के भक्तों में आज सर्वाधिक लोकप्रिय है । उनकी एक अन्य रचना "यमुना-लहरी" बतायी जाती है । मथुरा के तत्कालीन कलेक्टर ए.एफ.ग्राउस अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ "मथुरा : ए डिस्ट्रिक्ट मैमोयर" में श्री बाँके बिहारी जी महाराज के मन्दिर से सम्बन्धित सूचनाओं के लिए आपसे उपकृत हुए थे । ऐसे श्री जगदीश गोस्वामी जी के पावन स्मरण के साथ यह काव्यांजलि सादर भेंट है : -----
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नीलकण्ठ-जगदीस भ्रात दोउ परम रसिक वर । राधाकुण्ड नहात ; बाँह गहि गोवरधन - धर । कीन्हीं कृपा ; स-मोद संग वृन्दावन आये । निज मन्दिर पधराय, विविध विधि लाड़ लड़ाये । लही बिहारी चरन की सरन , रच्यौ अष्टक बिमल । श्री जगदीस गुसाँईं की , रहहि सदा कीरति अटल ।।
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